होठों को सुखाया है आंखों को भिगोया है।

पाया तो नहीं उस को ख़ुद को भले खोया है।।


रातों को जगा हूँ मैं इक उसकी मुहब्बत में

जो मुझको भुलाकर के बड़े चैन से सोया है।।


अश्क़ों की लड़ी यूँ ही आँखों से नहीं निकली

ज़ख्मों को मेरे मैंने माला में पिरोया है।।


लहरों की ख़ता कैसी मल्लाह की गलती क्या

उल्फ़त ने मेरे दिल की किश्ती को डुबोया है।।


तस्वीर सलामत है तेरी टूटे हुए दिल में

मत पूछ के यादों को किस तरह सँजोया है।।


सुरेश साहनी कानपुर

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