ये कैसी तिश्नगी है राम जाने।

कहाँ से कब जगी है राम जाने।।


नहीं था नाम जिनका तज़किरे में

उन्हें ही क्यों खली है राम जाने।।


ख़ुदा से भी अदावत मानता है

कोई कितना बली है राम जाने।।


गया गुज़रा है जो इक जानवर से

वो कैसे आदमी है राम जाने।।


कोई रातों को तारे गिन रहा है

कहीं कुछ तो कमी है राम जाने।।


अभी बारिश का मौसम भी नहीं है

फिज़ां में क्यों नमी है राम जाने।।


तुम्हारा इस तरह ख़्वाबों में आना

ये क्या लत लग गयी है राम जाने।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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