रोना धोना अनबन समझे।

छूट गया अपनापन समझे।।

गोदी, बाहें और बिछौना

फिर घर आँगन कोना कोना

चंदामामा, सूरज चाचा

गुड्डा गुड़िया खेल खिलौना

क्रमशः छूटा बचपन समझे।।


टॉफी कम्पट चूरन चुस्की

कंकड़ पत्थर घोंघे सीपी

गुल्ली डंडा इक्खल दुक्खल

दिन भर बातें इसकी उसकी

यूँ ही गया लड़कपन समझे।।


नासमझी में खाये खेले

घूमे संग अकेले मेले

समझे तो अनजान सफर में

डोली में चल दिये अकेले

छूट गया फिर आँगन समझे।।


फिर चुनर में दाग लगाकर

माली संग एक बाग लगाकर

जाने कौन नगर जा बैठा

विरहिन से बैराग लगाकर

छूट गया फिर साजन समझे।।


बाबुल को सुध आयी एकदिन

डोली एक पठाई एक दिन

मैली चुनर छुपती कैसे

सचमुच मैं शर्मायी एकदिन

छूट गया फिर जीवन समझे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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