गिरती घुनती शहतीरों के साये में।
जीवन जैसे जंज़ीरों के साये में।।
तदबीरों ने हाथ पकड़ कर खींचा तो
पैर फंसे थे तकदीरों के साये में।।
तुमने हमको ढूंढ़ा है परकोटों में
हम बैठे थे प्राचीरों के साये में ।।
दुःख ने साथ निभाया है हर हालत में
सुख बंधक है जागीरों के साये में।।
ताज पड़े हैं दरवेशों की ठोकर में
क्यों जाएं आलमगीरों के साये में।।
तुम शायर को शीशमहल में खोजोगे
वो होगा नदियों तीरों के साये में।।
सुरेशसाहनी,कानपुर
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