गरीब का मतलब बेईमान नहीं होता। आज मेरा  मोबाइल फोन  गिर गया था।अभी कुछ देर पहले जगन्नाथ पुरी पीठ के 145वें शंकराचार्य जगद्गुरु निश्चलानंद जी महाराज के हिन्दू राष्ट्र ,धर्म और संस्कृति पर उद्बोधन को सुनकर निकला था। सँयुक्त परिवार के टूटने से और एकल परिवारों के बढ़ने से जो सांस्कृतिक पर्युषण आया है, उस पर उनका आख्यान अद्वितीय था। आज मैं अपने राष्ट्र के  विश्वगुरु होने की संभावना मात्र से अभिभूत था। 

  परन्तु  फ़ोन गिरते ही सारा जोश ठंडा हो गया था।जहां फोन गिरे होने की संभावनाएं थी।मैंने उस रास्ते पर तक़रीबन 300 मीटर तक वापस आकर फिर दो तीन और ढूँढा, पर नतीजा शून्य ही रहा। एक दो भले लोगों ने अपने फोन से मेरा नम्बर मिलाया पर आउट ऑफ नेटवर्क बता रहा था।कुछ ने कहा शायद  किसी को मिल गया है और उसने स्विच ऑफ कर दिया है।किसी ने कहा  कहीं नाली में गिर गया होगा।आदि आदि। जितने लोग, उतनी सलाह, उतनी संभावनायें। 

  एक सज्जन बोले अरे इनका क्या? एक कवि सम्मेलन में निकल आएगा। कउन मेहनत का पैसा था। उन्हें क्या पता कि एक कवि का दिल इससे कितना आहत होता है।और कटाक्ष करने वाले हैं कि बाज नहीं आते।

 करीब पंद्रह मिनट बाद मैं अपने घर पहुंचा और श्रीमती जी को यह शुभ सूचना दी। उन्होंने धैर्य दिलाते हुए कहा कि कोई बात नहीं। खो गया तो खो गया।दूसरा ले लीजियेगा। इस बीच एक शुभेच्छु घर भी आ गए। थोड़ा अफसोस जताया फिर कहा कि, अरे भाभी! गलती तो इन्ही की है। कवि हैं, इन्हें अपना तो होश रहता नहीं मोबाइल क्या सम्हालेंगे।" मुझे यह नहीं समझ आया कि ये सज्जन सहानुभूति दर्शाने आये हैं कि आपदा में अवसर तलाशने। ख़ैर श्रीमती जी को उनका अंदाज अच्छा नहीं लगा और वो भी नज़ाकत भाँप के चुपचाप सरक लिए।

     मेरे रिपोर्ट लिखवाने की बात पर उन्होंने कहा क्या फायदा ? चाहे रिपोर्ट लिखवाएं या सर्विलांस पर लगवाएं जब पिछले चार फोन नहीं मिले तो ये क्या मिलेगा।

 ऐसा कहते हुए उन्होंने नम्बर मिलाने का प्रयास किया। इस बार रिंग जा रही थी। दूसरे प्रयास में किसी ने फोन पर हैल्लो का उत्तर दिया। उन्होंने जल्दी जल्दी में कहा अरे भैया ये मोबाइल मेरे हसबैंड का है।भैया ये बहुत परेशान हैं प्लीज! फोन दे दीजिए।

उसने कहा, घबराईये नहीं। फोन आपको मिल जाएगा।अभी मैं कहीं दूर निकल आया हूँ।एक घण्टे में फोन आप को मिल जाएगा" और उसने फोन काट दिया।उसके बाद दसियों कॉल कर डाले पर फोन नहीं उठा।

 एक दो मित्रों ने बताया कि कोई शातिर है । फिंगरप्रिंट लॉक होने की वजह वो फोन स्विच ऑफ नहीं कर पा रहा है। इसीलिए टाइम पास कर रहा है।इधर समय बीतता जा रहा था। 

 एक दो मित्र इस बात से हैरान थे कि मैं शांत क्यों हूँ।एक  ने कहा कि आप को हैरान होना चाहिये और आप हैं कि कुछ बोलते नहीं। हँसी मजाक में लगे हैं।

  धीरे धीरे डेढ़ घंटे बीत गए। इस बीच रिंग जाती रही। पर उसने फोन नहीं उठाया। लगभग दो घण्टे बाद मैंने कहा कि अब उम्मीद नहीं है । कल देखा जाएगा। फिर एक मित्र से मैंने कहा, यार एक बार और मिलाओ। और घंटी जाते ही इस बार फोन उठ गया। उधर से आवाज आई अरे भाई साहब!क्यों परेशान हैं आपका फोन मेरे पास है आपको मिल जाएगा।"

 मित्र ने कहा कि तुम हो कहाँ? अपनी लोकेशन बताओ मैं आकर ले लेता हूँ। उसने लोकेशन नहीं बताया। पर मेरे घर से  लगभग एक किलोमीटर दूर के एक अपार्टमेंट का नाम लिया और बोला आप वहाँ आ जाओ।

   मित्र ने  पुनः कहा, 'अरे वो ठेके के पास "

उस व्यक्ति ने अनभिज्ञता जताई। मेरे मित्र ने आशंका जताते हुए मुझसे कहा कि स्साला कहीं पार्टी में फंसा होगा।टालू मिक्सचर दे रहा है। अभी कहो तो सीओ की धमकी दें।

 मैंने मना करते हुए कहा कि जब वह व्यक्ति स्वयं फोन देने के कह रहा है।कोई गड़बड़ आदमी होता तो फोन स्विच ऑफ कर लेता। या सिम निकाल कर फेंक देता।

एक और सज्जन ने भी मेरे विचार से सहमति जताई। ख़ैर कुछ देर बाद मैं और मेरा मित्र उसके बताये हुए संभावित स्थान पर सशंकित आशा के साथ उपस्थित थे।

बड़ी देर तक इधर उधर देखते रहे। कोई भी कार या मोटरसाइकिल की लाइट देखते ही आशा जग उठती थी।

लेकिन जब वह वाहन आगे गुजर जाता तो आशा धुंधलाने लगती थी।

 दस पंद्रह मिनट बाद मेरे मित्र ने पुनः मेरे नम्बर पर फोन लगाया और कहा," भैया आप ने दस मिनट बाद मिलने को कहा था।अब तो बीस मिनट से ऊपर हो गए। आप कहाँ हो? 

पर आप तो दिख नहीं रहे।आप कहाँ हो। कैसे पहचानेंगे , उस आदमी ने जवाब दिया।

इस बार फोन पर मैंने बताया कि मैं हरा कुर्ता पहने हुए हूँ और मेरे सामने एक पान की दुकान है जो अब भी खुली  है।

'हाँ हाँ मैंने देख लिया। मैं आ रहा हूँ।"उधर से आवाज आयी।

   कुछ देर बाद सामने से एक परिवार पैदल आता दिखाई दिया। पास आने पर उनमें से एक ने मुझे गौर से देखते हुए कहा ,क्या आप ही हैं? 

जी मैं ही हूँ। , मैंने उत्तर दिया।

परन्तु एक लेडी ने फोन पर कहा है कि वो उसका फोन है। मैं आपको फोन कैसे दे दूं।

उसका जवाब सुन कर मैं हैरान था। तब तक मेरी श्रीमती जी भी स्कूटी से वहीं पहुँच गयीं। 

 कुछ देर बाद जब उसने तसल्ली कर ली तो फोन मुझे दे दिया। शुक्रिया धन्यवाद आभार की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद मैंने उस आदमी से कहा कि भाई आप अपना परिचय तो दीजिये। आपने फोन लौटाकर मेरा दिल जीत लिया है। 

तब उसने बताया कि भाई मेरा नाम शाहज़हां है । मैं हुगली से आया हूँ यहाँ के लिए नया हूँ।इसीलिए आप को लोकेशन नही दे पा रहा था। ये मेरी पत्नी और बेटा बेटी हैं।ये लोग कानपुर घूमने आये हैं।

मेरे मित्र ने पूछा क्या करते हो?

जी मैं प्राइवेट मज़दूर हूँ । ,उसने उत्तर दिया।

फिर और भी परिचय हुआ। उसकी पत्नी बच्चों से बातचीत हुई।

 बातचीत के क्रम में शाहजहां ने बताया कि उसे उसके गोपाल नामक मित्र ने खाने  पर बुलाया था। आते समय यह फोन रास्ते मे पड़ा मिला। वहाँ कोई नहीं था। फिर मैंने सोचा जिसका फोन होगा वो ख़ुद कॉल करेगा। लेकिन जब से फोन हाथ मे आया तब से मुझे उलझन हो रही थी । अब जब आपको फोन दे दिया अब अच्छा लग रहा है। 

 और मैंने गौर किया कि उस व्यक्ति की पत्नी और बच्चों के चेहरों पर भी सहज संतोष और प्रसन्नता परिलक्षित हो रही थी। और मैं उस साधारण से व्यक्ति के अंदर एक बहुत बड़े इंसान को देख रहा था।

 मित्र ने कहा कि यार फोन मिल गया अब उसे सौ दो सौ देकर दफा करो। परन्तु उस व्यक्ति के चेहरे पर छाये संतोष के भाव और उसके परिवार का निश्छल स्वभाव देखकर उसके उपकार का मोल लगाने की हिम्मत नहीं हुई।

 

सुरेश साहनी कानपुर

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