दर्द के गहरे समन्दर

और ये तन्हा सफर


अपनी हस्ती एक किश्ती

हर कदम पर इक भँवर


आसमानों सी उदासी

ज़ीस्त ढोती उम्र भर


मंजिलों पर रक़्स करते

साथ तुम देते अगर


दोस्तों से हमने खाये

जम के खंज़र पीठ पर


चांदनी में वो जलन थी

धूप है अब बेअसर


अब न मिलना जा रहे हैं

ये ज़हां हम छोड़ कर


सुरेश साहनी, कानपुर

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