जो थे मेरे करीब के सारे गुज़र गए।।

यूँ एक एक करके न जाने किधर गए।।


बेशक़ वो फिक्रमंद थे मेरे इसीलिए

तन्हाइयों में ग़म के हवाले तो कर गए।।


वो गिर गए फिसल के मेरे आंसुओं के साथ

कैसे कहें कि मेरी नज़र से उतर गए।।


हम मन्ज़िलों के वास्ते चलते रहे अदीब

मौकापरस्त पा के मरहले ठहर गए।।

सुरेश साहनी अदीब

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