खो रही है सांस भी रफ्तार कुछ।
ज़ीस्त भी है उम्र से बेज़ार कुछ।।

हसरतों को तो है जीने की ललक
मौत पर ज़्यादा दिखी तैयार कुछ।।

इश्क़ की परवाह क्यों हो हुस्न को
पूछता है जब तलक बाज़ार कुछ।।

जंग लाज़िम है मुहब्बत में अगर
कर ही लीजै रार कुछ तक़रार कुछ।।

कैसे माने हम महाभारत इसे
कह रहे हैं तीर कुछ तलवार कुछ।।

एक से मुश्किल है सम्हले ये जहाँ
हो सके तो कृष्ण लें अवतार कुछ।।

सुरेश साहनी, अदीब
कानपुर

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