हमें पता है  प्रभु असत्य का 

रावण कभी नहीं मरता है

फिर भी हम खुश हो लेते हैं

कागज का रावण जलने पर

सचमुच की लंका हारी थी

या असत्य की जीत हुई थी

सचमुच का रावण वध था

या रक्ष संस्कृति हार गई थी

जाने कितने कालनेमि या

रावण अब भी घूम रहे हैं

घूम रहे हैं साधू बनकर

राम नाम का परदा डाले

उन्हें पता है इस कलियुग में

राम नहीं अब आने वाले

राजनीति के जिस प्रपंच से 

राम स्वयम ही ऊब गए थे

राम स्वयं ही जल समाधि

लेकर सरयू में डूब गए थे

माता सीता समझ गयी थी

जिस रावण का वध होने पर

वे सम्मान सहित लौटी थीं

पूरण समयावधि होने पर

उन्हें घूमते मिले अवध में

उससे अधिक घिनौने रावण

कर्मकांडतः ऊँचे लेकिन

वैचारिकतः  बौने रावण

माँ धरती की गोद समाती

माँ सीता ने कहा राम से

तुम्हें अवतरित होना होगा

कलियुग में फिर इसी काम से....

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