अपने पंखों को कतर आया है।

तब कहीं उड़ के शहर आया है।।


छाँह गमलों में उगाने वाला

काट कर बूढ़े शज़र आया है।।


गाँव आया है कि कुछ बेचेगा

किस तरह कह दें कि घर आया है।।


आशना तो है मगर क्यों उसमें

अजनबी शख़्स नज़र आया है।।


ग़ैर जैसा तो नहीं है फिर भी

कौन आया है अगर आया है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132


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