हमारे सच के तलबगार ही न थे शायद

बगैर झूठ के बाजार ही न थे शायद।।

जहाँ भी जाओ वहीं हुस्न को तवज्जो थी

हमारे इश्क़ के बीमार ही न थे शायद।।साहनी

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