हमारी ख्वाहिशें हैं इक ज़रा सी।

ख़ुदारा छीन लें सबकी उदासी।।


जहाँ बच्चों के होठों पर हँसी हो

वहीं है अपनी काबा और काशी।।


वज़ह ढूंढ़ो कुछ इनकी अज़मतों की

फ़क़ीरों की भी लो ज़ामातलाशी।।


ख़ुदा जो कुछ करे अच्छा करेगा

कभी खुद से न करना बदक़यासी।।


दिखावे पर मरी जाती है दुनिया

किसे भाती है अब सादालिबासी।।


मेरी तुर्बत कहाँ है ये बताओ

मुझे आने लगी है अब उबासी।।


वो पत्थरदिल मेहरबाँ हो रहा है

हमें भी आ गयी है संगतराशी।।


 

                सुरेश साहनी  कानपुर


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