ग़ज़ल


तुमने नींदें मेरी उचाटी है। 

मैंने जग जग के रात काटी है।।


मैंने किस पर खुशी लुटा डाली

जिसने दौलत ही ग़म की बांटी है।।


ख़ुद सलाम-ओ-पयाम दे देकर

दिल ने दूरी हर एक पाटी है।।


दिल के हाथों जहाँ लुटा था मैं

हाँ यही दून की वो घाटी है।।


मुझमें दुनिया में कोई फर्क नहीं

मैं भी माटी हूँ ये भी माटी है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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