बेशक इंकलाब को हम बेकार समझते हैं।

उसकी ताकत तो सरमायेदार समझते हैं।।


आख़िर मेहनत की ताकत  तुम किस दिन समझोगे

पूँजी वाले तो तुमको बेकार समझते हैं।।


वो कल का लइमार हमें लइमार बताता है

और उसे अब हम अपनी सरकार समझते हैं।।


हम गरीब हैं मेहनतकश ही जात हमारी है

हम पागल ख़ुद को सैयद अंसार समझते हैं।।


हम अपने वोटों की ताकत  कब पहचानेंगे

जिसकी कीमत हम दारू की धार समझते हैं।।


हम खुद को मजदूर बताते हैं तो शर्माकर

शायद हम सब खुद को ओहदेदार समझते हैं।।


सुरेश साहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है