तुम्हारी वफ़ा से दमकने लगा हूँ।

गुलाबों के जैसा महकने लगा हूँ।।

निगाहें तुम्हारी नशीली नशीली

कदम दर कदम मैं बहकने लगा हूँ।।

तेरी सांस की गर्मियां उफ खुदारा

खरामा खरामा टहकने लगा हूँ।।

तेरे जिस्म का शाखे- गुल सा लचकना

तेरी ओर मैं भी लहकने लगा हूँ।।

जो देखीं तेरी मोरनी सी  अदाएं 

परिंदों  सा मैं भी चहकने लगा हूँ।।....

सुरेश साहनी, कानपुर

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