जब हमें चुभने लगी  थी उम्र 

की वह धूप।

छांव जैसे दे गया उनका सलोना रूप।।

हाय अंधे प्रेम के होते नहीं जब पाँव।

कैसे चल कर आ गया मेरे हृदय के छाँव।।

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