मैं अपने एकाकीपन को
किधर छोड़ दूं कहाँ झटक दूँ
जहाँ गया मैं वहीं आ गया
मेरा दामन पकड़े पकड़े
कभी कभी अपने बेटे को
किसी शाम जब ले आता हूँ
इसी पार्क में
वह अंगुली थामे रहता है
उसे पता है उसकी सारी
उत्कंठाओं का मैं हल हूँ
एक बार वह भटक गया था
हम दोनों ने बहुत देर तक
एक दूसरे को खोजा था
और पसीने की बूंदे तब
मेरे माथे से टपकी थी
उस सर्दी में शायद मेरा-
बेटा भी कुछ सहम गया था
खैर आज वह साथ हमारे
पुलकित मन से टहल रहा है
मुझे पता है जब तक मैं हूँ
वह एकाकी नहीं रहेगा
किन्तु मेरे एकाकीपन को
लौटा कर मेरे बचपन को
सिर्फ पिता ही भर सकते हैं
जो अब मेरे साथ नहीं हैं
दूर अकेले आसमान में
एक सितारा देख रहा है
शायद वह ही मेरे पिता हैं.....
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