इक नज़र से गुनाह थे फिर भी।
यार हम बेगुनाह थे फिर भी।।
हमने माना कि हम बुरे होंगे
काबिले रस्मो-राह थे फिर भी।।
दो कदम साथ चल तो सकते थे
हम भले ही तबाह थे फिर भी।।
दाग वो ढूंढते रहे मुझमें
जिनके दामन सियाह थे फिर भी।।
तुम ने समझा महज़ फ़कीर हमें
दिल के हम बादशाह थे फिर भी।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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