हो ना हो पर सबसे बेहतर अपनी बीनाई समझ।

कर तमाशा ख़ुद को दुनिया को तमाशाई समझ।।


मेरी नज़रे तेरी नजरों से फिसल कर जिस्म पर

पड़ गई तो क्या हुआ बस हुस्न आराई समझ।।


है शहर भर आशना तो क्या करे तेरा अदीब

कुछ समझ पर अपने शायर को न हरजाई समझ।।

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