आपसे वादा वफ़ा होता रहा

और पत्थर देवता होता रहा

ये ज़मीं शैतान के बस में रही

आसमानों पर ख़ुदा होता रहा

रोज़ हम ज़ंज़ीर को तोड़ा किये

रोज़ आलम पींजरा होता रहा

इस कदर हमने शिवाले गढ़ लिए

आदमी पत्थरनुमा होता रहा

हम भी क्या लिखना था क्या कुछ लिख गए

शेख़ रह रह कर ख़फ़ा होता रहा

सुरेश साहनी,अदीब

कानपुर

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