हम हमें कैसे भला भूल गए।

आज अपना ही  पता भूल गए।।


तुमको देखा तो कहाँ याद रहा

शर्म भूले कि हया भूल गए।।


जीस्त की शाम कहाँ ले आयी

हाय हम अहदे-वफ़ा भूल गए।।


हम तो इक भूल पे शर्मिंदा है

आप हैं कर के ख़ता भूल गए।।


अब की उल्फ़त में वो तासीर कहाँ

आज हम ग़म का मज़ा भूल गए।।


इश्क़ अपना है अज़ल से क़ायम

हुस्न वाले ही सदा भूल गए।।


बेख़ुदी में ये कहाँ याद रहा

शेर छूटा कि क़ता भूल गए।।


मौत के बाद हमें याद आया

थे मुहब्बत में क़ज़ा भूल गए।।


वो दवा भूल गए ले के दुआ

हम दुआ ले के दवा भूल गए।।


मग़फ़िरत इनको कोई क्या देगा

इश्क़ वाले तो ख़ुदा भूल गए।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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