क्या कभी वे इधर नहीं आते।

क्यों उन्हें हम नज़र नहीं आते।।


महज़बीनों को देख लेते हैं

दीद में हम मगर नहीं आते।।


भर मुहल्ले में झांकते हैं वो

सिर्फ़ अपने ही घर नहीं आते।।


कशमकश में है अबकी ईद अपनी

वे जो अब बाम पर नहीं आते।।


सल्तनत होती यदि ग़ज़लगोई

दाग़ आते जिगर नहीं आते।।


ऐसे ख़्वाबों की उम्र होती है

ख़्वाब ये उम्र भर नहीं आते।।


साहनी क्यों न छोड़ दें उनको

वे अगर राह पर नहीं आते।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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