नादां से अल्हड़ होने तक जीवन ही मेरा जीवन था
जीवन के उस हिस्से पर तुम मत अपना अधिकार जताना।।
आंगन से कस्बे तक जाना
कस्बे से शहरी बन जाना
रसना का चूरन कम्पट से
पानीपूरी तक आ जाना
फिर काफी पिज़्ज़ा बर्गर से गुपचुप याराना हो जाना।।
जीवन के उस हिस्से पर तुम मत अपना......
अक्सर कॉलेज आते जाते
उसका राहों में दिख जाना
कभी मुहल्ले के नुक्कड़ पर
उसका सारी शाम बिताना
धीरे धीरे उसे देखना अपनी भी आदत बन जाना।।
जीवन के उस हिस्से पर तुम मत अपना....
परिस्थिति वश छूट गए सब
गुड्डे गुड़िया खेल खिलौने
छूट गया अपना घर आंगन
स्वप्न बिके सब औने पौने
अब तुम ही हो मेरा जीवन तुमसे है हर ताना बाना।।
अब जीवन के उस हिस्से पर मत अपना.....
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