आईना हूँ जिसको पत्थर समझे हो।
क्या तुम मुझको मीत बराबर समझे हो।।
मैं इंसां हूँ कैसे तुमको समझाऊं
तुम तो मुझको खालिश शायर समझे हो।।
अपने घर में यार तकल्लुफ ठीक नहीं
मेरे घर को कब अपना घर समझे हो।।
मेरे उनके सबके घर धरती पर हैं
एक तुम्हीं खुद को अम्बर पर समझे हो।।
करते हो जितनी बातें बेमतलब हैं
क्या तुम अपने को मतलब भर समझे हो।।
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