कौन कहता है हुनर बिकता है।

जब भी बिकता है बशर बिकता है।।


कब दवा खाने शिफा देते हैं 

हर कहीं मौत का डर बिकता है।।


है सियासत की गिरावट बेशक़

गाँव बिकता है शहर बिकता है।।


पहले बिकते थे ज़मी और मकां

अब सहन बिकते हैं घर बिकता है।।


तब धरोहर थे गली के बरगद

आज आँगन का शज़र बिकता है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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