सिर्फ़ यादों के कारवां लेकर।
ख़ुद को जाएं कहां कहां लेकर।।
फेल करता तो कुछ सूकू रहता
कुछ न बोला वो इम्तेहां लेकर।।
उसने मेरी जमीन भी ले ली
मेरे हिस्से का आसमां लेकर।।
जबकि दुनिया सराय -फानी है
क्या करेंगे भला मकां लेकर।।
अब उसे मांहताब क्या बोलें
वो जो मिलता है कहकशां लेकर।।
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