पंख हैं आकाश घटता जा रहा है।
क्या उड़ें अभ्यास घटता जा रहा है।।
सोच को विस्तार देकर क्या करेंगे
कुछ न कुछ सायास घटता जा रहा है।।
आज रिश्तों में तपन है गर्मियों की
प्रेम का मधुमास घटता जा रहा है।।
हो गए हैं आप माया दास गोया
आप में सन्यास घटता जा रहा है।।
कुछ शिकायत तो नहीं है आईने से
आपका विन्यास घटता जा रहा है।।
सुरेश साहनी कानपुर
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