ठीक वैसे ही हम यहाँ आये।
जैसे मक़तल में मेहमां आये।।
आप रोते हुए ही आये थे
मत कहें हम थे शादमा आये।।
आपके पास भूल आये हम
या कहीं और दिल गुमां आये।।
अपनी ऊंचाईयों के रस्ते में
कोई दूजा न आसमां आये।।
गुफ्तगू आपसे हमारी हो
ग़ैर क्यों अपने दरमियाँ आये।।
चार दिन में बुला लिया मालिक
हम तो नाहक़ तेरे ज़हां आये।।
सुरेश साहनी कानपुर
Comments
Post a Comment