कहां कहां से मुहब्बत न तार तार हुई।
ये तेरे बाद तो रुसवा हजार बार हुई।।
न तेरे बाद कोई जुस्तजू रही दिल में
न तेरे बाद तमन्ना ही बेकरार हुई।।
कि अहले हुस्न ने समझा महल जिसे अक्सर
हम इश्क वालों की आगे वही मजार हुई।।
नहाते अपने पसीने में जो रहा दिन भर
हमारे दहका की अक्सर यही पगार हुई।।
दराज उम्र तो की है सनम तेरे गम ने
हमारी ज़िंदगी इतनी तो कर्जदार हुई।।
हम अपनी लाश उठाए कहां कहां न गए
हमारी ज़िंदगी गोया कोई कहार हुई।।
अदीब तुझको भरम था कि आशना है सब
तो तेरे बाद न इक आंख अश्कवार हुई।।
सुरेश साहनी अदीब कानपुर
9451545132
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