जिंदगानी यूँ खतम करते नहीं।

हाँ कहानी यूँ खतम करते नहीं।।

सल्तनत दिल की बढ़े चाहे घटे

राजधानी यूँ खतम करते नहीं।।

सूख जाए ना समन्दर ही कहीं

 ये रवानी यूँ  खतम करते नही।।

 कुछ अना से कुछ ख़ुदा से भी डरो

हक़बयानी यूँ ख़तम करते नहीं।।

शक सुब्ह नजदीकियों में उज़्र है

शादमानी यूँ खतम करते नहीं।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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