कितने चलते फिरते मुरदे।
ढूंढ़ रहे हैं दूजे कंधे ।।
इसकी हद तय करना लाज़िम
आख़िर कोई कितना लादे।।
तन से योगी मन से भोगी
दुनिया भर के गोरख धंधे।।
धन को मैल बताने वाले
छुप छुप लेते ऊँचे चंदे ।।
नेता अफसर योगी भोगी
तन के उजले मन के गंदे।।
गंगा क्यों ना मैली होती
नहलाने पर ऐसे बन्दे।।
सब बारी बारी गिरने हैं
अंधा गुरू शिष्य भी अंधे।।
हंसते हंसते फँसे साहनी
नैतिक हैं माया के फंदे।।
सुरेश साहनी ,कानपुर
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