कब दूर रहा तुमसे कब पास रहा  बोलो

कब तुमको मेरे ग़म का एहसास रहा बोलो

हम साथ में रहकर भी तनहा ही रहे बरसों

घर घर न रहा क्यों कर वनवास रहा बोलो

दौलत से कहीं बढ़कर घर प्यार से बनता है

क्या तुमको कभी यह भी आभास रहा बोलो

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है