फिर मेरे सब्र का पारा टूटा।
कस्रे-दिल जबकि दुबारा टूटा।।
इक नदी टूट के रोई फिर से
फिर तसल्ली का किनारा टूटा।।
वो ख़ुदा भी रहा आदम की पनह
जब ख़ुदा का था पसारा टूटा।।
मैंने दिल तुमको दिया था यारब
ये भी टूटा तो तुम्हारा टूटा ।।
फिर ख़ुदा ने दिया धोखा शायद
फिर ख़ुदाई का सहारा टूटा।।
कोई तो बात हुई है घर मे
कैसे आंगन से ओसारा टूटा।।
मेरी आँखों मे अंधेरा चमका
और क़िस्मत का सितारा टूटा।।
तेरी तस्वीर भी होगी ज़ख्मी
शीशाए-दिल जो हमारा टूटा।।
सुरेश साहनी ,कानपुर
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