तीर उनके कमान अपनी थी।
उनकी बाज़ी पे जान अपनी थी।।
सबने नाहक़ हवा पे तंज़ किये
शौक़ उनके उड़ान अपनी थी।।
वो दवा की जगह ज़हर वाली
माल उनका दुकान अपनी थी।।
हम तो मोहरा थे ऐसे हाथों के
जीत गैरों की शान अपनी थी।।
हम भी मेड इन जापान रखते थे
आन अपनी थी बान अपनी थी।।
अपनी ग़ैरत पे रख के हार गये
बात उनकी ज़ुबान अपनी थी।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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