मत पूछो वे मेरे क्या थे।
कुछ कुछ मेरी भी दुनिया थे।।
खाक़ करीबी नापे जोखें
तुम कितने थे हम कितना थे।।
कितनों को आशीष मिला था
कितनों के पोषण कर्ता थे।।
यति गति लय से युत प्रवाहमय
वे कवि थे या ख़ुद कविता थे।।
बन्धु मित्रवत मित्र बन्धुवत
भ्रात तात गुरु पितु माता थे।।
विषय विशेष विशेषण अनुपम
क्या कमलेश महज संज्ञा थे।।
ब्रम्ह लीन हो गए ब्रम्ह ख़ुद
क्या वे एक सुखद सपना थे।।
कमलेश जी के सम्मान में
सुरेश साहनी, कानपुर
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