#एकपावबिजलीदेना।

आंधी पानी  आने के बाद पूरे कानपुर शहर की नागरिक व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त हो गयी थी।कानपुर अपनी हरियाली के लिए जाना जाता है।लेकिन इस चक्रवाती हमले से सर्वाधिक नुकसान पेड़-पौधों को ही हुआ।कानपुर नगर निगम के साथ नागरिक प्रशासन ने पूरी तन्मयता से अभियान चलाकर जगह जगह गिरे पेड़ पौधे, और उनके अवशेषों का संग्रह विसर्जन किया।ठेके पर कार्य करने वालों ने अपने अनावश्यक व्यय, मानव श्रम और डीजल आदि संसाधन खूब बचाये।सरकारी सफाई कर्मियों ने जनता को राहत पहुचाते हुए कूड़ा कर्कट जहाँ है जैसा है के आधार पर बरसात का इंतज़ार करने के लिए कह कर छोड़ दिया।हमें वे लोग और हमारी जनता भी तुलसी बाबा से प्रेरित लगते हैं।होइहिं सोई जो राम रचि राखा।।'की भावना हमारे यहां जनजन में विद्यमान है।

खैर हमारा असली मकसद विद्युत् व्यवस्था पर लिखना था। क्योंकि आँधी तूफान के बाद विद्युत व्यवस्था भी लड़खड़ा जाती है।जगह जगह पेड़ों के गिरने से तार टूटते हैं ,खम्भे गिरते हैं।शार्ट सर्किट होते हैं ,और ट्रांसफार्मर बिगड़ते हैं।ऐसे में विद्युत अधिकारीयों से लेकर कर्मचारियों तक की हालत खराब हो जाती है।विद्युत उपकेंद्रों के टेलीफोन बिगड़ जाते हैं।मोबाइल फोन में सुनाई देना बन्द हो जाता है।स्थायी कर्मचारी पेट और तबियत खराब होने के चलते केवल घर और सोमरस केंद्रों पर ही पहुँच पाते हैं।हाँ निविदा कर्मी जरूर देर रात तक जूझते नज़र आते हैं।

अर्मापुर एस्टेट में तो विद्युतकर्मियों ने पांच बजे के बाद सेवा देने में असमर्थता जता दी।बिचारे बिना ओवर टाइम के क्या काम करें।फिर सिविल लाइन और आला अधिकारीयों की बिजली व्यवस्था तो दुरुस्त है।बाकी लोग क्या दो तीन दिन बिना बिजली के रह नहीं सकते।आखिर हम केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं।ऊपर से आज भी बिना सुरक्षा साधनों के केवल चप्पल और प्लास से ऊँचे ऊँचे खम्भों पर चढ़कर काम करना आसान नही है।ठेका कर्मचारी नए लड़के हैं।बाल बच्चों की जिम्मेदारी भी कम होती है।उनको ओवर टाइम की दरकार भी नही है।फिर एक दो फॉल्ट हो तो ठीक भी हो जाएँ।पूरे एस्टेट की फॉल्ट तो ब्रम्हा भी नहीं सुधार सकते।

लेकिन शहर में ऐसी स्थिति नही है।विद्युत् विभाग के सभी कर्मचारियों ने लगकर शहर की विद्युत व्यवस्था को बहाल करने का पूरा प्रयास किया है।किन्तु जगह जगह रिपेयर कार्यों के चलते हर बारह घंटे में आठ से दस घंटों की कटौती हो रही है।नागरिकों में गजब का धैर्य है।चिड़चिड़ा रहे हैं, तिलमिला रहे हैं।पसीने में नहा रहे हैं।बच्चे बिलबिला रहे हैं।औरतें गर्मी से आधुनिक हो रही हैं।लोग टीवी मोबाइल से विरत होकर सामाजिक हो रहे हैं।आपस में लड़ झगड़ ले रहे हैं।लेकिन प्रशासन को पूरा सहयोग कर रहे हैं।

शहर में उद्योग धंधे भी फल फूल रहे हैं।इन्वर्टर जनरेटर और इमरजेंसी लाइटो का कारोबार बढ़ा है।घरों में किचेन असहयोग आंदोलन चल रहे हैं।जिसके चलते फ़ास्ट फ़ूड सेंटर और रेस्टोरेंट्स वाले भी खुश हैं।कुल मिलाकर कानपुर हर हाल में खुश रहना और समस्याओं से जूझना जानता है। कनपुरिया अंदाज है कि भूकम्प भी आ जाए तो वे कहेंगे यार झूले का मजा मिल गया।

फिलहाल मेरे पड़ोसी निषाद जी कह रहे थे,"यार एकाध किलो बिजली का जुगाड़ हो जाता हो मजा आ जाता।,हम सोच रहे हैं कि क्या ऐसा वाकई हो सकता है।आखिर जुगाड़ का अविष्कार तो अपन ने ही किया है।हमें एक हरियाणवी जोक याद आता है।हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में जुगाड़ गाड़ी चलती है।बताते हैं वहाँ जुगाड़ से बहुत काम होते हैं।एक बार अमरीका के राष्ट्रपति ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी से कहा आपने जुगाड़ का पेटेंट नहीं कराया है।कम से कम हमें ये तो बता दीजिये के जुगाड़ है क्या बला?

अटल जी ने मुस्कुराते हुए कहा , 'हम नहीं बता सकते।जुगाड़ के सहारे तो हमारी सरकार चल रही है।" 

मैंने कहा , अगर ऐसा होने लगे तो तमाम दुकानें खुल जाएंगी।शरुवात में कण्ट्रोल की दुकाने खुलेंगी।फिर केस्को की दुकाने खुलेंगी।उसके बाद टाटा और आईडिया जैसे दुकाने आ जायेंगीजब जिसको जरूरत हुयी किसी भी दुकान पर पहुंचेगा और कहेगा भईया !एक पाव बिजली देना।अच्छा सौ ग्राम ही दे दो।दुकानदार कहेगा छुट्टा नहीं है पांच रुपया का दे देते हैं।लेकिन इससे एक गड़बड़ हो जायेगी। हर ऐरा गैरा बिज़ली की सुविधा उठाने लगेगा।पता चला गरीब आदमी भी बिजली का बल्ब इस्तेमाल कर रहा है।मोमबत्ती कम्पनियां खाली बर्थडे और कंडोलेंस के सहारे कितना चलेंगी।

शुक्ला जी ने काफी सोच समझकर कहा कि यार ये पचास ग्राम सौ ग्राम बिजली वाला आईडिया सही नहीं है।इससे बिचारे चोर भूखे मर जाएंगे।और आधे हिंदुस्तान का मूल व्यवसाय खत्म होना अच्छी बात नहीं है।

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