मीर गालिब के हम चचा न हुए।

क्या कहें क्या हुए कि क्या न हुए।।


ख़ाक हो के भी मुतमइन हैं हम

उनको गम है कि लापता न हुए।।


जाने कैसे खुदा खुदा है पर

हम नहीं होके भी खुदा न हुए।।


हर बुराई में यूं तो अव्वल हैं

इक कमी है कि हम वबा न हुए।।

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