कहानी को यहीं पर छोड़ते हैं।
मुहब्बत से तअल्लुक़ तोड़ते हैं।।
खुशी कब छोड़ दे दामन हमारा
तुम्हारे ग़म से रिश्ता जोड़ते हैं।।
न कतरा कर निकल जाएं चुनांचे
चलो तूफान का रुख मोड़ते हैं।।
पुरानी डायरी को अब न खोलें
हमारे ज़ेहन को झिंझोड़ते हैं।।
नई किश्ती से उतरे हैं नदी में
चलो इक नारियल ही फोड़ते हैं।।
तो आओ मौत का डर खत्म कर दें
चलो मक़तल की जानिब दौड़ते हैं।।
सुरेश साहनी कानपुर
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