वो मुझे समझा रहा है ज़िंदगी के मायने।
जिसको मालुम ही नहीं है बंदगी के मायने।।
तुमने उसके होठ देखे ही नहीं है इसलिए
तुम नहीं समझोगे मेरी तिश्नगी के मायने।।
तुमने ढूंढा हैं कभी सहराओ में सागर कोई
खाक समझोगे मेरी दीवानगी के मायने।।
हुस्न पर वहशी निगाहें डालने वाले बशर
कब समझते हैं नज़र की गंदगी के मायने।।
शख्स जो झिलमिल सितारों में रहा है उम्र भर
उसको क्या मालूम क्या हैं तिरगी के मायने।।
मौत से अकड़े बदन को देखकर हैरां है वो
पूछता है जीस्त की अफसूर्दगी के मायने।।
घर से मस्जिद और फिर मस्जिद से घर करता नहीं
जो समझता इश्क में आवारगी के मायने।।
सुरेश साहनी कानपुर
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