दिल की किश्ती को किसी और किनारे ले चल।

चल जहाँ ले के चलें वक़्त के धारे ले चल।।


आंधियां तेज हैं तूफां भी अड़े हैं ज़िद पर

चल इन्हीं तुंद हवाओं के सहारे ले चल।।


मुझको उनके लिए जीना भी है मरना भी है

चल कि रहते हैं जहाँ वक़्त के मारे ले चल।।


ज़ुल्म की उम्र है दो चार बरस बीस बरस

इसके आगे तो सिकन्दर भी हैं हारे ले चल।।


तुझको लगता है कि तू बांध के ले जाएगा

तुझसे बेहतर भी गए हाथ पसारे ले चल।।


नेकियां साथ में जाएंगी ये तदफीन नहीं

मेरे आमाल हैं बेहतर तो उघारे ले चल।।


तेरी ज़ुल्फ़ों के तो सर होने के  इमकान नहीं

कौन उलझी हुई किस्मत को सँवारे ले चल।। 


शाम होती है हर इक ज़ीस्त की रोता क्यों है

वक़्त से पहले भी डूबे हैं सितारे ले चल।।


चल जहाँ राम नहीं सारी अयोध्या डूबी

साहनी को उसी सरजू के किनारे ले चल।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

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