उसने बाहों में भर लिया था फिर।
क्या बताएं कि क्या हुआ था फिर।।
उन निगाहों से मय बरसती थी
उसकी बातों में भी नशा था फिर।।
रात इक ख्वाब सी सुहानी थी
और उस रात जागना था फिर।।
इंतेजारी में लुत्फ था बेशक
उससे मिलना तो कुछ जुदा था फिर।।
ख़्वाब की कैफियत जुदा थी पर
क्या हक़ीक़त में कम मज़ा था फिर।।
सुरेश साहनी कानपुर
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