झूठ सच मुश्किल सहल कहने लगे।
इस तरह हम भी ग़ज़ल कहने लगे।।
उम्र भर घर से रहे महरूम फिर
अपने तकिए को महल कहने लगे।।
जानते थे हुस्न की ऐय्यारियां
इश्क का फिर भी बदल कहने लगे।।
आजकल के हुक्मरां फिरओन हैं
दौरे- हाज़िर को अजल कहने लगे।।
झूठ सच मुश्किल सहल कहने लगे।
इस तरह हम भी ग़ज़ल कहने लगे।।
उम्र भर घर से रहे महरूम फिर
अपने तकिए को महल कहने लगे।।
जानते थे हुस्न की ऐय्यारियां
इश्क का फिर भी बदल कहने लगे।।
आजकल के हुक्मरां फिरओन हैं
दौरे- हाज़िर को अजल कहने लगे।।
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