सिर्फ़ मुक़म्मल तन्हाई हो।

पास न  मेरे परछाई हो।।

ना भूली बिसरी यादें  हों

ना यादों की रानाई  हो।।

मौसम हो तो ऐसा जैसे

धुन्ध अचानक घिर आई हो।।

अब उससे क्या लेना देना

बाद भले वो पछताई हो।।

उम्मीदों अब दामन छोड़ो

नाहक़ क्यों कर रुसवाई हो।।

कुछ तो जान सकूं दुनिया को

मौला इतनी बीनाई हो।।

मेरी दुनिया हो इतनी सी

मैं हूँ मेरी कविताई हो।।

सुरेश साहनी कानपुर

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