रहे अजाने दांव पेंच से कर न सके तिकड़म।

इसीलिए तो रंगमंच तक पहुंच न पाए हम ।

हम सकुचाए बता न पाए उन्हें व्यथा अपनी

फिर किसकी थी फुरसत सुनता कौन कथा अपनी

सब अपनी उलझन में उलझे सब के अपने गम।।

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