ज़ख़्म थे तो नहीं हरे फिर भी।
जाने क्यों कर नहीं भरे फिर भी।।
वार उसके लिहाज में झेले
जबकि आते थे पैंतरे फिर भी।।
जबकि मालूम था न सुधरेंगे
हम पे माइल थे दूसरे फिर भी।।
हमसे छूटी न कोशिशे-ताबीर
ख़्वाब सब फूल से झरे फिर भी।।
ज़िन्दगी ग़म से दूर करती क्या
मौत तो ले गयी परे फिर भी।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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