इंद्रप्रस्थ की खुशियों को युग तक्षक ने काटा है।
उपहासों से एक रुदाली ने घर को बांटा है।।
संस्कार पड़ गया जहाँ पर किसी शकुनि के हाथों
वहाँ पितामह को भी अक्सर पुत्रों ने डांटा है।।
किसी महाभारत को रोके जाने की कोशिश में
कृष्ण नीति है पाँच गांव देने मे क्या घाटा है।।
युद्ध बहुत से हुए किन्तु क्या घृणा खत्म हो पाई
सदा प्रेम ने ही नफ़रत की खाई को पाटा है।।
आज ऑक्सीजन की खातिर वो भी भटक रहे हैं
जिनके घर में एसी है कूलर है फर्राटा है।।
सदा नहीं रहने पर उनके लाभ समझ मे आये
लगता था जिनका होना ही जीवन का घाटा है।।
सब कहते हैं शोर बहुत है कोरोना के कारण
मुझे दिख रहा बस्ती में मरघट का सन्नाटा है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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