कोई तो मेरी उलझन सुलझाता सहल करता।।

कोई तो मेरी मुश्किल राहों को सरल करता।।

वो प्यास बुझाता मेरी आँखों की दरश देकर

आना मेरा दुनिया मे एक बार सफल करता।।

कुछ ख़ास नहीं फिर भी हम आम नहीं रहते

जब मेरी कहानी में वो फेरबदल करता।।

ये प्यार भरी नज़रें जिस दम वो फिरा देता 

बेदम को अदम करता फ़ानी को अज़ल करता।।

मुरझाई कली दिल की खिलकर के कँवल होती

मन्दिर सा मेरा मन तो तन  ताजमहल करता।।

कान्हा की तरह लगता निर्धन के गले दिल से

कोई तो सुदामा की कुटिया को महल करता।।

कैसे न लजाऊँ मैं कैसे नहीं झिझकूँ मैं

मेरी भी अना रहती कुछ तो वो पहल करता।।

वंशी हूँ मैं छलिया की एक बार मुहब्बत से

अधरों पे मुझे धरता फिर  लाख वो छल करता।।

सुरेश साहनी

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