चलो उनको मना लेते हैं फिर से।
नया मौसम बना लेते हैं फिर से।।
तअल्लुक़ तर्क हो जाने से बेहतर
तसद्दुद हर मिटा लेते हैं फिर से।।
अनाये उनकी हों उनको मुबारक
हमीं हम को झुका लेते हैं फिर से।।
कोई रिश्ता नहीं उनका वफ़ा से
चलो हम आज़मा लेते हैं फिर से।।
अगर क़ातिल की मेरे आरज़ू है
तो हम मक़तल में आ लेते हैं फिर से।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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