वही गया था कभी ज़िद में छोड़कर मुझको।
उठा रहा है जो इतना झिंझोड़कर मुझको।।,
कभी उम्मीद कभी जर्फ और कभी दिल से
कहां कहां से गया गम ये तोड़कर मुझको।।
मैं रेत की तरह बिखरा हूं टूट कर लेकिन
वो कह रहा है कि जायेगा जोड़कर मुझको।।
निकल चुका हूं बहुत दूर हर तमन्ना से
भला कहां से वो लायेगा मोड़कर मुझको।।
कहां से अश्क इन आंखों में लेके आऊं अदीब
गमों ने रख दिया जैसे निचोड़कर मुझको।।
सुरेश साहनी अदीब कानपुर
9451545132
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