न कुछ पूछा गया मुझसे न कुछ बताया गया।

तो किस गुनाह पे मुजरिम मुझे ठहराया गया।।


मुझे सजा मिली हैरत नही मलाल नहीं

मेरा कातिल मेरा मुंसिफ़ अगर बनाया गया।।


मेरा वकील भला था मगर ग़रीब भी था

मुझे पता है उसे किस तरह पटाया गया।।


सुरेश कौम ने अब देवता क़ुबूल किया

पता चला मुझे जब दार पे चढ़ाया गया।।


सुरेश साहनी,कानपुर


मुन्सिफ़-न्यायाधीश

^दार-सूली

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है